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5 Jan 2021 · 1 min read

“अमर बलिदान”…

कैसा ये आग़ोश है, नब्ज़ क्यूँ खामोश है,
मिट्टी है क्यूँ बैचैन, आसमां क्यूँ नहीं रहा बरस??
युवा इस हिन्द का जाने कहाँ गया है भटक ???
लेकिन, मतवाला ‘भगतसिंह’ गया था फांसी लटक।।
अब भी वक़्त है, खुशबू मिट्टी की है आबाद,,
जूझते हुए गोलियों से चला गया वो शेखर आज़ाद।।
भारत की आज़ादी के लिखते लिखते वो ख़त,
कब जाने हो गया शहीद, वो हमारा बटू केश्वर दत्त,,
धर्म,मजहब सब एक है, जाने क्यूँ हम अनेक
हर कोई मदहोश है, कैसा ये जोश है ??
कहे “सत्या” कुर्बानी वीरों की अमर बलिदान है,,
नहीं देंगे बँटने देश को टुकड़ों में, जब तलक जान है।।
Satya shastri. Jind (HR.)

Language: Hindi
1 Like · 7 Comments · 316 Views
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