अमन परस्त
अमन परस्त
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जो भी करता इस जहांन में
अमन चैन की बात,
हर हृदय भाईचारा पले
सोचता है दिन – रात,
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
रहें सभी एक साथ,
पले कभी ना किसी के अंतश
बैर हिंसा का भाव।
ऐसे मानव का है वंदन
और क्या कहूँ, कैसे कहूँ
क्या लिखूं,
कैसे धन्यवाद करूं,
क्या इतने शब्द है मेरे पास
शायद नहीं
फिर भी आपके ये अल्फाज
सदैव रखूंगा संजोकर
हर दिन, हर पल अपने साथ।
जिस दिन आपके ये शब्द
अपना बर्चस्व दिखायेंगे
अमन चैन होगा चहुओर
अपनै गंध से
इस गुलिस्तां को महकायेंगे
उस दिन दरश को आऊंगा
सारे जहां को बताऊंगा
हमारे ही मध्य
एक फरिस्ता रहता है,
बाते बस अमन चैन की कहता है
करूंगा प्रणाम, नमस्कार
या फिर आदाब
शायद उसी दिन उठेगा
हर मानव हृदय
प्रेम पूरित शैलाब।
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©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
४/३/२०१८
मुसहरवा (प.चम्पारण)
बिहार