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18 Mar 2020 · 1 min read

अभी बहरा नहीं हूँ

चलो ये मान लेता हूँ कि मैं गहरा नहीं हूँ
समंदर मैं भी पर तेरी तरह ठहरा नहीं हूँ

मिरे पथ पर तुझे साए दरख़्तों के मिलेंगे
हूँ मैं भी रेत सा लेकिन कोई सहरा नहीं हूँ

भिगो लूँ शायरी को दर्द से तो लौट जाऊँ
जमाने की तरह ऐ इश्क़ मैं पहरा नहीं हूँ

बदलती नीयतों देखो सँभल कर बात करना
मैं गूँगा हो गया हूँ पर अभी बहरा नहीं हूँ

बिछाकर के बिसातें साजिशों की बैठ लेकिन
चले तू चाल मुझसे मैं तिरा मोहरा नही हूँ

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