अभी तो रात बाकी है
अभी तो रात बाकि है। पथिक तुम क्यों उदास हो ?
दीप की लौअभी बुझी नहीं, तुम क्यों निराश हो ?
चाँद को देखो जो हर दिन घटता वो बढ़ता है।
दूसरोंको बांटता है चांदनी,खुद ज़ख़्म सहता है।
क्यों हो रहे तुमअसहज,कुछ सीख लो उससे।
सुने होंगे नानी-औ-दादी से.तुमने चाँद के किस्से।
नहीं रुकता कभी वो सोचकर,अमावस की रात आएगी।
दूज के चंदा को देखो ,जिंदगी फिर जग -मगाएगी।
थक गए क्यों एक पल की हारसे,तुम क्यों यूँ वदह्वास हो?