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11 Feb 2017 · 1 min read

अभिव्यक्ति

कुछ मौन होती अभिव्यक्ति जो
आज स्मरण हो आयी मानस में
ताजी बर्फ में चीनी घोल खाना
हथेली में बर्फ देर तक रखने में
रिकार्ड तोड़ने की अजब शान
कहां हो तुम मेरे बचपन अज्ञान ।।।

चुपके से किसी की पीठ में बर्फ दे
भाग जाना और काका का बर्फ में
फिसल झटके से उठने का गुमान
हमारी हंसी को रोकने की कोशिश
दनादन फिसलते बने फिर अनजान
कहां हो तुम मेरे बचपन अज्ञान ।।।।

बर्फीले गोलों की मार से बचते हुऐ
भीगे भीगे डरे से घर को लौटते हुऐ
प्रेम की नर्म झिडकीयों में गर्म होते
चावल भात में सिकती ठंडी उंगलियां
वो रूई की रजाईयां व बोर्ड के इम्तहान
कहां हो तुम मेरे बचपन अज्ञान ।।।

कभी सगड़ के कोयलों में ईजा सरसों
के गर्म तेल में मोम के घोल से तर करती
हमारे फटे लाल गाल, वो तपिश भरे
अहसास जिंदा हैं अभिव्यक्ति को
कहां हो तुम मेरे बचपन अज्ञान ।।।।

डायरी का पन्ना
नीलम नवीन “नील”
देहरादून 7/1/17

Language: Hindi
435 Views
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