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12 Sep 2017 · 1 min read

अब ये न बेबसी रहे

ग़ज़ल
*******
ग़र चाँदनी खिली रहे
तो दूर तीरग़ी रहे
?
अरमान सारे ख़ाक़ हैं
बस दिल में बेबसी रहे
?
खुशियाँ मिली है सारी तो
आँखों में क्यों नमी रहे
?
रूठो न यार मुझसे तुम
ये दोस्ती बनी रहे
?
आखों से जाम छलका दे
फिर दूर तिश्नग़ी रहे
?
जब तक रहे तू सामने
ये सांस भी रुकी रहे
?
दामन छुड़ा न मुझसे तू
कुछ देर और खड़ी रहे
?
मँहगाई ने रुला दिया
अब ये न मुफ़लिसी रहे
?
अब हम जहाँ मिलें सनम
वो शाम क्यूँ ढली रहे
?
तेरे बग़ैर होठों पर
फ़रियाद इक दबी रहे
?
“प्रीतम” न प्यार हो जुदा
सबको सनम मिली रहे
?
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
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2212 1212
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