अपनों से दूरी
अपनों से दूरी
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देख दुनिया को रुआंसा हो गया
आज अपनो से जुदा सा हो गया
फासले बढते रहे ् परिवार से
साथ अपनो का दुआ सा हो गया
संग अपने थे खुशी भी साथ थी
भाग्य मेरा क्यो खफा सा हो गया
साथ उनके जिनदगी आबाद थी
किन्तु देखो सब खुदा सा हो गया
पास सब के मैं कही होता अभी
प्राण तन से अब जुदा सा हो गया
रूह मुझसे आज मेरी है खफा
साथ अपनों का खुदा सा हो गया
आज अपनों के लिए तड़पे जीया
यह तड़प अब साथ सा हो गया
मैं कहूँ किससे कहूँ यह सोच कर
यह हृदय अब रूआंसा हो गया
प्यार अपनों का बड़ा पैगाम है
संग अपनों का दिलासा हो गया
छोड़ कर परिवार कोई खुश नहीं
दूर अपने बे सहारा हो गया
………………✍
? पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
?? ग्राम + पो.- मुसहरवा (मंशानगर) पश्चिमी चम्पारण, बिहार