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21 Sep 2017 · 2 min read

अपनों की चोट! (रोहिंग्या पर आधारित)

धराशाही हो गयी थी तुम्हारी
वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा
जब फ़ाको में काट दिया गया था
तुम्हारी उस दरियादिली को
जो शरणागति की तुम्हारी
शास्त्रसम्मत और मूढ़ मान्यताओं
से उपजी थी।

की इतनी भी छोटी नही ये धरती
जो संपूर्ण आसमान से हाथ
रखने का दावा करो तुम
बदले में पावो
खून..हत्याएं.. विध्वंश..
कटे सर.. लाशो के ढेर.. धार्मिक उन्माद!

फिर से कर रहे हो वही भूल
जो चुनौती दे रहे हैं
बचाने वालों को
असंवेन्दनशील इस हद तक हैं
की उन्हें अपने धर्म पर खतरा हैं।

समय आ गया हैं
देशीय चिंताओं को गहरे में लेने
वाली उन सभी कट्टर बातों का
जो बिगड़ैल बेटे के लिए
एक बाप की कड़ी फटकार है,

नही चाहिए जिम्मेदारियां
नहीं चाहिये दरियादिली
हमें पहले अपने सूखे खेत सींचने हैं
स्वार्थी होने की उस हद तक
जहाँ पानी की हर एक बूंद
पहले हमारे अपनों के काम आये

विवश हूँ कि स्वार्थी हूँ
पर शांति कब नहीं स्वीकारी हमने
सदा ही स्वीकारी हैं
जोड़ने वाली हर नीति
भारत को गौरवशाली बनाने वाली
हर पहल
लेकिन देश को कचरा बनाने वाले कारखाने
हमे मंज़ूर नहीं
रोहिंग्या के पूर्वकर्म स्वयं
करेंगे उनका दिशा निर्धारण
बसायेंगे उन्हें उस दुनिया में
जो उन्ही के जैसी है
किसने कहा कि अतिथि हमें स्वीकार नहीं
पर रोटी के बदले
खून की दावत भी हमें मंज़ूर नहीं।

विश्वगुरु के बढ़ते कदम
गुलाम फिर ना हो जाये
एक सपना सौहार्द्र का
कही मिट्टी में ना खो जाये
उठना होगा हमें
खुद को ही उठाने
अंधे मानवतावाद की लकीर को
सदा के लिए मिटाने
सुहानुभूति को अस्त्र बना
अशांति के पैर पसारने वाले हर सपने को
चकनाचूर होना पड़ेगा

उस स्वार्थ को पालना पड़ेगा
जो अपनों को जरा सी चोट की आहट से
पराये को आँखे तरेर कर देखता हैं!

– © नीरज चौहान
20-09-2017

Language: Hindi
402 Views
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