अपने पथ पर अटल जिंदगी
छंद-सिंह विलोकित
विधा -गीतिका
मात्रिक ८,८या १०,६(१६ मात्रिक)
उलझी उलझी बंधी जिंदगी।
चक्रवात में, फंसी जिंदगी।।(१)
पतझर सावन सबको सहकर,
धूप-छांव में पली जिंदगी।(२)
रिश्ते-नातों के मानक पर
पूरी-पूरी कसी जिंदगी।(३)
स्याही जैसी काली रातें,
उनके तप में तपी जिंदगी।(४)
ऊबड़-खाबड़ जीवन का पथ
पथ के फन में रची जिंदगी।(५)
चाहें जितने हों कंटक पर,
अपने पथ पर अटल जिंदगी।(६)