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17 Sep 2018 · 1 min read

अनुशासनहीनता (व्यंग्य कविता )

पिता भूल गया अपने पितृत्व को,
और माता अपना मातृत्व भूल गयी .
ना रहा वोह अनुशासन और नियंत्रण ,
संतान जो अब हाथ से निकल गयी .
घर के मुखिया की अब लाठी भी गायब है,
नज़रों के तेवर,स्वर की गर्जना खो गयी.
माता का ममता भरा आँचल भी ना रहा ,
साड़ी छोड़ जींस -टॉप जो पहनने लग गयी .
माता के हाथ का खाना भी अब नहीं भाता ,
जंक-फ़ूड खाने की लत जबसे लग गयी .
पहली पाठशाला बच्चे की अब घर नहीं रही ,
आधुनिक गजट्स /सोशल मिडिया हो गयी .
अब कौन सिखाये इन्हें संस्कार /नैतिक शिक्षा ,
बड़े-बुजुर्गों की बातें भी आउट डेटेड हो गयी.
ना किसी का डर है ,ना शर्मो -लिहाज़ है बाक़ी ,
गुरुजनों पर भी तंज कसने की आदत हो गयी .
भावनाओं को कुछ समझते ही नहीं मशीनी मानव,
बल्कि भावनाओं से खेलनी की इनकी रूचि हो गयी .
देख कर बहुत दुःख होता है हमें आज की युवा पीड़ी को ,
जब से यह बदमिजाज़,बदतमीज़,अनुशासन हीन हो गयी.
ओह ! इतना अपमान /तिरस्कार /अवहेलना सहकर भी ,
इन्हें दुआएं देना बेचारे बड़ों की मज़बूरी हो गयी .

Language: Hindi
324 Views
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