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8 Nov 2017 · 1 min read

अध्यात्म एक अनुभूति, आयोजन से दूर,

*गुफ्तगू थी तेरे मेरे बीच में,
जमाना समझने लगा !
क्या खाक समझा ?
जो बात थी अन्दर के भावों की,
उन्हें बाहर परखने लगा,
.
ताला बंद ही कब था ?
अनुमान लगा बैठे !

कल्पना नाम रख !
हकीकत में छलांग लगा बैठे !

मालूम ही नहीं,क्या चाहिए ?
मुफ्त में जेल की शलाखों में कैद हो बैठे,

ताले सच में लगे थे,
एक नहीं,
बहुतों से जबरन व्यवहार कर बैठे !

जमाना साथ था,
भेडिये भी शेर की चाम ओढ़ बैठे,

हकीकत सामने आनी ही थी,
बंद पिंजरे थे ही कहाँ ?
जो मुक्त होते !!

संदेश अध्यात्मिक सम्मोहन से बचे,
डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,

Language: Hindi
Tag: शेर
1 Like · 1 Comment · 508 Views
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