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28 Jul 2016 · 6 min read

अधूरी सी कहानी तेरी मेरी – भाग ५

अधूरी सी कहानी तेरी मेरी – भाग ५
गतांक से से …………

अब सोहित के पास तुलसी का फ़ोन नंबर था, इस बात से सोहित बहुत खुश था | वो सोच रहा था इस बार तो तुलसी से बात हो जायेगी और इन्तजार इतना मुश्किल नहीं होगा | लेकिन पूरा महीना गुजर गया इसी उहापोह में कि तुलसी को फ़ोन कब किया जाए | और फिर सर्वे पर जाने का समय भी आ गया | इस बार जब सोहित प्रेमनगर पहुंचा तो पाया इस बार तुलसी ड्यूटी नहीं कर रही है | वो एक महीने की ऑफिसियल ट्रेनिंग के लिए कहीं बाहर गयी हुई है | उसने अपनी जगह अपनी छोटी बहिन नव्या को ड्यूटी पर लगवाया हुआ था | सोहित को बड़ी निराशा हुई | असमंजस की स्थिति में पूरे महीने सोहित ने तुलसी को फ़ोन भी नहीं किया और यहाँ आया तो तुलसी से भी मुलाकात नहीं हुई | निराशा में सोहित ने तुलसी का फ़ोन लगाया किन्तु फ़ोन भी बंद था | वो तुलसी के बारे में सोचता हुआ वहां से चला गया | इस बार पूरे सप्ताह सोहित ने बेमन से काम किया |
अगले चार महीने सोहित ठीक से बात भी नहीं कर पाया तुलसी से क्योंकि दो महीने उसको ज्यादा बड़े क्षेत्र में काम दिया गया था | पहले तीन दिन तो वो पहाड़ों पर रहा फिर उसके बाद उसके कार्यक्षेत्र में भी अत्यधिक काम होने के कारण वो तुलसी के क्षेत्र में जा ही नहीं पाया | पूरे एक महीने तुलसी भी अपनी ट्रेनिंग में व्यस्त रही और ट्रेनिंग ख़त्म होने तक उसका भी बहुत सारा काम छूट गया था | तो वो वापस आकर भी व्यस्त हो गयी उसको भी सोहित के बारे में सोचने का वक़्त नहीं लगा |

इस बीच में उसने तुलसी को कोई फ़ोन भी नहीं किया | फ़ोन करता भी तो कैसे क्योकि उसने नंबर तुलसी से जो नहीं लिया था | तुलसी के पास भी सोहित का नंबर नहीं था जो वो फ़ोन कर लेती | सोहित बहुत बेचैन हो रहा था तुलसी से मिलने के लिए, तुलसी इस सबसे अन्जान अपने आपमें व्यस्त थी | या शायद जानकार भी अनजान बनी हुई थी | सोहित को कभी कभी तुलसी की बातों से लगता कि शायद वो भी कुछ कहना चाहती है, मगर फिर वो इस ख्याल को दिमाग से निकाल देता |

सोहित की एकतरफा मुहब्बत उसको बेचैन किये थे | वो नहीं जानता था कि तुलसी के मन में क्या है | और तुलसी बात तो हंसकर ही करती थी मगर अपने दिल की बात जुबां तक तो क्या अपने हावभाव में भी नहीं आने देती थी | जब भी वो मुस्कुराती, सोहित घायल हो जाता था और तुलसी की हाँ सुनने के लिए आहें भरता था |

सोहित के अन्दर हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि वो तुलसी के सामने जाकर अपने दिल की बात करे | इस बार तो इन्तजार भी लम्बा ही खिच रहा था | बस हलकी फुलकी ही मुलाकत हुई थी जिसमे कोई बात नहीं हो पायी थी |

धीरे धीरे समय गुजरता जा रहा था | अप्रैल २००८ आ गया था | सोहित को तुलसी से मिलते हुए १ साल से ऊपर हो चुका था | इस बार जब सोहित प्रेमनगर में सर्वे कर रहा था तो उसको जो इनफार्मेशन मिली उससे लग रहा था कि तुलसी और चाची ने गलत रिपोर्ट बनायीं है | पक्का करने के लिए सोहित ने तुलसी को फ़ोन किया कि वो लोग कहाँ पर हैं और उनके पास पहुँच गया | उनकी रिपोर्ट से अपनी रिपोर्ट मिलायी तो उसका शक यकीन में बदल गया | तुलसी तो मानने को तैयार ही नहीं थी कि उन लोगों ने गलती की है | अत: उन दोनों में से किसी एक को भी उस घर ले जाकर वेरीफाई करवाना आवश्यक था तो तुलसी ने चाची को सोहित के साथ जाने को बोला | तुलसी साथ जाने में झिझक रही थी | चाची को वेरीफाई करवाने पर भी उनकी गलती निकली जो चाची ने स्वीकार कर ली | सोहित की बात आज भी नहीं हुई तुलसी से और वो वापस चला गया |

शुक्रवार को फिर सोहित को प्रेमनगर जाना था | उसने सर्वे किया, एक जगह पर थोडा संदेह हुआ किन्तु तुलसी को उसी जगह पर बुलाया तो तुलसी ने घरवालों से बात करके संदेह को स्पष्ट कर दिया, और वहां कोई गलती नहीं हुई थी बल्कि घरवालों ने ही गलत जानकारी दी थी | बिना किसी विशेष घटना के शुक्रवार भी चला गया और फिर शनिवार भी किन्तु सोहित और तुलसी दोनों ने ही कदम आगे नहीं बढ़ाया |

सोहित के पास तुलसी का नंबर होने को बावजूद वो तुलसी को फ़ोन नहीं कर रहा था | ऑफिसियल बातों के लिए तो सोहित फ़ोन करता था मगर अपने दिल की बात करने के लिए वो शब्द नहीं ढूंढ पा रहा था | वो सोच रहा था अगर मैं फ़ोन करूँगा भी तो तुलसी से कहूँगा क्या ? क्या बात करूंगा? अगर वो नाराज हो गयी तो ??? अगर उसने मना कर दिया और ये बात सबको बता दी तो???? इसी तरह के विचार सोहित के मन में चल रहे थे | समय अपनी गति के साथ उड़ा जा रहा था | सोहित तुलसी की तरफ से कुछ होने की उम्मीद कर रहा था |

तुलसी के मन में भी सोहित थोड़ी थोड़ी जगह बनाने लगा था | तुलसी भी सोहित के बारे में सोचने लगी थी और बातें भी करने लगी थी | तुलसी को सोहित का हंसना और हँसते हुए उसका दांत दिखाना बहुत अच्छा लगता था | सोहित और तुलसी दोनों ही हमेशा हँसते रहने वाले इंसान थे, एक दूसरे को यही खूबी पसंद आयी थी |

मई का महीना, जबरदस्त गर्मी और उसमे घर घर जाकर सर्वे करना ! सामान्य समय होता तो बहुत ही कष्टकर होता किन्तु ये तो मौका होता था सोहित का तुलसी से मिलने का | उसके लिए तो ये सर्वे का होना मानों प्रेम सन्देश होता था | प्रथम तीन दिन तो सामान्य ही गुजरे | चौथे दिन जब सोहित प्रेम नगर में सर्वे करने पहुंचा तो पहले उसने टीम को खोजा फिर कुछ घरों तक टीम के साथ ही काम किया | इस दौरान एक असामान्य सी घटना घटी | गर्मी की वजह से तुलसी छाता साथ लेकर आयी थी | हुआ यूँ कि जब सोहित टीम के साथ ही घरों को विजिट करने लगा तो तुलसी , सोहित के ऊपर छाता करके चलने लगी |

सोहित : ये क्या कर रही हो तुलसी ?
तुलसी : कुछ नहीं सर, गर्मी हो रही है तो आपको छाया कर रहे हैं |
सोहित : हमें तो आदत है ऐसे गर्मी में काम करने की | और यहाँ तो तुम छाया कर दोगी फिर तो मुझे ऐसे ही तेज धूप में ही काम करना है |
तुलसी : आप चिंता मत कीजिये हम आपके साथ छाता लेकर चल देंगे |
सोहित : (थोडा सा हंसकर) आपने तो हमें ‘राजाबाबू’ बना दिया तुलसी जी |
तुलसी : तो क्या हुआ ? (थोड़ी सी हंसी) हम भी तो ‘नंदू’ बन गए आपके |
सोहित : हाँ, वो तो है | ‘नंदू सबका बंधू’| हाहाहाहाहाहा
तुलसी : जी हाँ | हाहाहा
साथ में चाची भी हँस पड़ी |

सोहित के दिल में प्रेम की घंटियाँ बजने लगीं | वो सोचने लगा, “ तुलसी ने मेरे सर पर छाता क्यों लगाया ? सर हूँ सिर्फ इसीलिए या कुछ और कारण है ? क्या वो भी मुझे चाहने लगी है ? लगता तो है | लेकिन वो कुछ भाव भी तो नहीं आने देती अपने चेहरे पर या अपनी आँखों में |”
तुलसी भी सोहित के जाने के बाद उसी के बारे में सोच रही थी | उसके मन के तार भी बज उठे थे सोहित की हंसी के प्रेम संगीत से | तुलसी ने अपनी दीदी से सोहित में बारे में अपने विचार व्यक्त किये थे | दीदी ने तुलसी को कहा कि मैं तेरी बात करवा देती हूँ सोहित से, ला मुझे नंबर दे | लेकिन तुलसी ने कहा, उनके पास मेरा नंबर कबसे है लेकिन उन्होंने तो मुझे कॉल नहीं की कभी | जब भी हमारे काम में कोई कमी निकलती है तभी फ़ोन करते हैं, फिर तो जैसे मुझे भूल ही जाते हैं |

अब तो दोनों के ही मन में एक जैसी भावना थी | दोनों ही एक दूजे के प्रेम में थे, अब देखना ये था कि शुरुआत कौन करता है ? दोनों ही जल्दी से जल्दी सर्वे होने की कामना कर रहे थे जिससे कि दोनों की पुनः मुलाक़ात हो सके | दोनों ही प्रेम के मधुर सपने सजाने लगे थे |
सपने सजने लगे थे और समय भी अपनी ही गति से चलता जा रहा था और तुलसी-सोहित की आँख मिचौली को देखकर मंद मंद मुस्कुरा रहा था |

देखते हैं आगे समय की मुस्कान क्या गुल खिलाती है और वो इन दोनों के लिए क्या मायने रखती है |

क्रमशः

सन्दीप कुमार
२७.०७.२०१६

Language: Hindi
583 Views
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