अतीत का साया
मैं जब भी अकेली होती हूं,
अपने ही ख्यालों में होती हूं।
ऐसे में वो चुपके से आता है,
ख्यालों में खलल डालता है ।
जो छोड़ आई बहुत पीछे मैं,
वह तराना याद दिलाता है।
वो सपने याद दिलाता है,
वो चाहते याद दिलाता है ।
कुछ कसमें याद दिलाता है ,
कुछ वायदे याद दिलाता है ।
वो पल जिसने मुझे रुलाया ,
वो पल जिसमे मुझे हंसाया ।
वो पिता का जिनका साथ छूटा ,
उनका स्नेह बहुत याद दिलाता है।
फूल और कांटे जिससे जो मिले,
दोस्त और दुश्मन याद दिलाता है।
उसे में अपना स्वर्ण युग कहूं या ,
दुर्भाग्य पूर्ण समझ नहीं आता है।
वर्तमान से असंतुष्ट होती हूं कभी ,
तो अतीत अपनी याद दिलाता है ।
मगर जब अतीत में खोती हूं तो ,
कोई जख्म उसका याद दिलाता है ।
कुछ गलतियां , कुछ नाफरमानियां,
कुछ जिद ,कुछ भूलें याद दिलाता है।
अतीत के साए मुझे जब जब घेरते है,
तब तब असंख्य दर्द उमड़ आता है ।
क्या कहूं मैं मुझे मेरा अतीत रह रह,
कर अपनी बहुत याद दिलाता है ।
कैसे दामन छुडायूं मैं इसके सायों से,
इसका मेरी जिंदगी से गहरा नाता है ।