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16 May 2018 · 2 min read

अटल -नवाज-सम्वाद

अटल जी-
विश्व बन्धुत्व है मूल मंत्र,मै उस देश से आया हूँ
मित्रता का हाथ बढाने,मैं अटल बिहारी आया हूँ,
गर साथ निभावो तुम,तो युद्ध कि आशंका थमे
युद्ध विनास कि राह है,चलो सृजन कि ओर चलें,
नवाज-
रग रग में है खून खराबा,यह इतिहास हमारा है
लडते हैं हम हर कदम पर,यही कर्म हमारा है,
सिसांसन ही लक्ष्य रहा है,रिश्तों कि नही परवाह हमें,फिर कैसे,हम मित्र भाव कि ओर बढें।
अटल जी-मैं पुन:प्रस्तुत हूँ,मित्रता को,
। मियां नवाज आग बढो,
। पिछले युद्धों कि कटुता को,
। इसी शताब्दी में छोडो।
नवाज- प्रिय अटल जी, आप भद्र जन हैं
मैं प्रस्तुत हूँ मित्रता को,
। आओ बस पर बिहार करने को,
। और सम्बोधन लाहोर घोषणा को।
अटल जी-
दोनो ओर लहु बहा है, अब और न बहने देंगे,
जंग न होने देंगे,हम जंग न होने देंगे।
नवाज-
जंग से कैसे नाता तोडूँ,,जंग बसा है नस नस में,
तुम शान्ति दूत हो,मै जंग से वशीभूत हूँ,
फिर भी प्रस्तुत हूँ, युद्ध विराम को।
अटल जी-
अरे शरीफ,यह क्या हो रहा है शरहद पर,
नवाज-
मुजाहिर संघर्ष करते हैं,कश्मीर पर।
अटल जी-
यह विवाद कैद है,सिमला और लाहौर घोषणा में,
नवाज-
हमारा प्रयास है इसके अन्तराष्ट्रीयकरण में।
अटल जी-
हमें स्वीकार नहीं,यह राष्ट्रहित में।
नवाज-
हमारी रुह भटकती है काश्मीर में।
अटल जी-
तो सुनो, एक हाथ में,सृजन
दुसरे में,हम प्रलय लिए चलते हैं
जंग से भले ही हो परहेज,
पर कर्तब्य से नहीं टलते हैं।
नवाज-
ये मजहबी नहीं हैं बस में मेरे,
सैनिक भी खडे हैं मुझको घेरे।
अटल जी-
अब दांव पर सब कुछ लगा है,
रुक नहीं सकते,टूट सकते हैं पर झुक नही सकते
नवाज-
चीन और अमेरिका पर था विश्वास हमारा,
मित्र भी अब देते नही सहारा।
अटल जी कि रचना से उदधृत अशं-
विपदाएं,आती हैं आयें,हम न रुकेंगे,हम न झूकेंगे
प्रबल विरोधों के सागर में,हम सुदृड चटान बनेगे
जो आकर सर टकरायेंगे,अपनी अपनी मौत मरेंगे
छुइमुई के पेड नही हैं जो छुते ही मुरझा जायेंगे,
क्या तडिता घातों से नभ के ज्योतित तारे बुज पायेंगे,
आँधी,लघु लघु दीप बुझाती,पर धधकाती है दावानल,
कोटि कोटि हृदयों कि ज्वाला,
कौन बुझायेगा,किसमें है इतना बल,
हृदय हृदय में एक आग है,
कण्ठ कण्ठ में एक राग,
एक ध्येय है,एक स्वप्न,लौटाना है मां का सुहाग,
पापों कि लकां न रहेगी,यह उचास पवन का झौंका,
सागर को किसने बाधाँ है,तुफानो को किसने रोका,
मां के सभी सपूत गुंथते,ज्वलित हृदय कि माला,
हिन्दुकुश से महासिन्धु तक,जगी सघटन कि ज्वाला,
जब तक ध्येय न पुरा होगा,
तब तक पग कि गति न रुकेगी,
आज कहे चाहे कुछ दुनिया,
कल को बिना झुके न रहेगी।
नोट – नवाज शरीफ के कबूल नामे पर कारगिल युद्ध में विजयी होने पर लिखी गइ ये पक्ंतिया आज प्रासंगिक लगी हैं,आप सभी के साथ साझा कर रहा हूँ,एवम् शहीदों को श्रदांजली,और अटल जी कोश्रद्धा सुमन स्वरुप प्रस्तुत करता हूँ।

Language: Hindi
1 Comment · 460 Views
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