***** अजब दौर है *****
अजब दौर है कौन किस पर करता गौर है।
कहने को तो बातों का बहुत शोर है ।
पर अपनों के बीच भी कहां?
अपनो को मिलती ठौर है।
अजब दौर है।।
दम फुला जा रहा, हाय पैसा हाय पैसा, राग एक ही गा रहा।
कब दिन गुजर जाए।
जागते जागते ही हो रही भोर है।
अजब दौर है।।
अपनापन खो गया लालच इतना हो गया गरीब भूखा ही सो गया।
मांगता मिन्नतें वह ईश्वर से।
उसी के हाथ उसकी डोर है।
अजब दौर है।।
तन है धन भी चाहिए, पर मन औरो के लिए भी लगाइए।
कितना ही कमाइए पर मानवता न भूलाइए।
“अनुनय “अपना तो
इसी चिंतन पर जोर है।
भरोसा है कभी ना कभी तो लौटेगा अपनेपन का दौर है।
बदलेगा यह भी दौर है।।
राजेश व्यास अनुनय