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18 Sep 2018 · 2 min read

अखबार

क्यूँ लाता है तू ऐसी खबरें, जो हम सभी को रूला देती हैं।
मुझे ही नहीं सारे समाज को, अंदर तक खूब हिला देती है।
सुबह की चाय पर बेसब्री से, तुम्हारा इंतजार करते हैं।
बुरा बुरा पढवाओगे सब क्या, तुमसे यही उम्मीद
रखते हैं।
हमारी चाह अच्छे की रहती, ताकि सारा दिन सही गुजर सके।
जीवन गाडी पर आम आदमी, खुशी खुशी से खूब सफर कर सके।
लेकिन तू लाता है खबरें सुन, मासूमों के बलात्कार जैसी।
आतंकवादी से सीमा पर, जवानों के जीवन हार जैसी।
पहले किसी की लाटरी लग गई, या परीक्षा परिणाम लाता था।
कहीं शहर में कवि सम्मेलन हो, तो उसी के गुण बहुत गाता था।
ये सुन सुनकर अखबार रो पडा, सफाई में फिर वो कहने लगा।
इसमें कुसूर तनिक मेरा नहीं, बताते हुए खूब सिसकने लगा।
लाता हूँ मैं खबरें समाज की, दर्पण रहा हमेशा समाज का।
संस्कारों में फर्क है आया, मानव बदला गया है आज का।
भोले भाले होते थे पहले, छल कपट नहीं था उन लोगों में।
आज स्वार्थ अहंकार निर्दयता, डूबे हैं अनेक ही भोगों में।
कृपया करके मुझे दोष न दो, ठीक करो अपने ही समाज को।
तभी अच्छी खबर ला पाऊंगा, जानो आज ही तुम इस राज को।
तब आप सुबह की चाय के साथ, बहुत ही खुशी से पढ पाओगे।
मुझे भी सुकून मिलेगा सुन लो, बडे प्यार से पास बिठाओगे।
तब मेरा छपना सार्थक होगा, मुझ पर लगा कलंक धुल जायेगा।
अच्छी खबरें नहीं अखबार में, कोई न कह पायेगा कोई न कह पायेगा।

अशोक छाबडा
01052018

Language: Hindi
2 Comments · 404 Views
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