अखबार (सरसी छंद)
#तिथि – २/८/२०१९
#विधा – सरसी छंद
#विषय – अखबार
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
अखबारों से नाता अपना, है बचपन से यार।
बिना पढे अखबार सुबह को, लगता सब बेकार।।
छोटे थे तब नाव बनाते, और खेलते खेल।
शत्रु हों या मित्र के बच्चे, सभी बिठाते मेल।।
बड़े हुये फिर अखबारों ने, खोली सबकी पोल।
मंत्री संत्री अभिनेता हों, बजे सभी के ढोल।।
अखबारों में पढा कभी था, खबर चटाखेदार।
अखबारों से नाता अपना, है बचपन से यार।।
आजादी को लड़ने आये, थे सारे अखबार।
परवशता से गोरों के तब, हमें मिला उद्धार।।
कभी सत्य के संवाहक थे, ये सारे अखबार।
राष्ट्र धर्मिता के पथ चलने, करते थे तकरार।।
कालचक्र ने मारी पल्टी, खबर बना व्यापार।
अखबारों से नाता अपना, है बचपन से यार।।
लक्ष्मी देवी के संवाहक, बने सभी है आज।
बंद लिफाफा मिले जहाँ से, उन्हें पिन्हा दे ताज।।
पिछलग्गू बन बैठे हैं सब, लुप्त सत्य का वंश।
फन फैलाकर तक्षक जैसे, चुभो रहे हैं दंश।।
पिछलग्गू है उसके ही ये, जिसकी हो सरकार।
अखबारों से नाता अपना, है बचपन से यार।।
#स्वरचित
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”