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27 Mar 2018 · 1 min read

अक्षर-अक्षर टूट चुका है

अक्षर-अक्षर टूट चुका है शब्दों की इस डोरी से।
प्रेम के बंधन ढीले पड़ गए आंसू बहते, चोरी से ।

टूट टूट कर बिखरे मन में चुभने लगे हैं खंजर से।
चोट लहर की ऐसी है कि साहिल डरे समंदर से ।

तेरे पियारे शब्दों ने फ़िर घाव कर दिया सीने में।
डरता है यूँ हलक मधु से जलन होती है पीने से।

जोड़ना चाहूँ हर्फ-हर्फ मैं भूली बिसरी यादों से ।
दरद कलेजे में क्यूं उठता है तेरे अधूरे वादो से।

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