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20 Jun 2020 · 1 min read

अकेलापन

भीड़ में खड़े होकर भी खुद को, अकेला पाने लगे हम
भीगी पलकें हमारी मगर ,
सब को देख कर मुस्कुराने लगे हम ।
बंद होते गए हर दरवाजे जिंदगी के हमारे लिए ,
न जाने क्यों हम इतने बेबस और मजबूर होते गए
आशा की हर डोर अब टूटने लगी है ,
फ़िर भी आस्था के दिए हम जलाते रहे ।
उजाले की एक किरण को हम ऐसे तरसे, जैसे मौत जिंदगी की एक सांस को तरसे ।
नैनो के नीर भी बहकर अब सूख गए हैं ,
अब तो केवल मायूसी के बादल बरसने को रह गए हैं ।
सारे जहां ने दिवाली की खुशियां मनायी,
हम तो खाली दिए की तरह जलकर बुझ गए हैं।
यह जिंदगी भी बेमानी सी हो गई है,
न जाने क्यों हर खुशी कोरी कल्पना बनकर रह गई है।
सब की मौजूदगी में भी अकेली हो गई हूं मैं,
कि एक गुमनाम तस्वीर बनकर कर रह गई हूं मैं।।

Language: Hindi
6 Likes · 4 Comments · 575 Views
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