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26 May 2021 · 1 min read

‘ अंतर कल और आज का ‘

पकड़ ज़िंदगी के कुछ यादगार लम्हों को
बाँध कर रखा है मैने अपनी मुठ्ठी को ,

खोल दूँगीं तो वो फिसल जायेंगें
फिर वो लम्हें मेरे हाथ कहाँ आयेगें ,

बचपन के वो गजब के प्यारे दिन थे
सपनों से वो बेहद न्यारे पलछिन थे ,

हर बात पर अपनी ही ज़िद करती थी
अम्माँ की मैं ज़रा भी नही सुनती थी ,

सब कहते थे जब कितना सांवरा रंग है मेरा
फिर मेरा दिमाग चलता था होते ही सबेरा ,

सब नहा – धो अच्छे कपड़े पहन तैयार होते
मैं इतराती अपने चेहरे पर ओडोमॉस पोते ,

जोर – जोर से सब मुझ पर खूब चिल्लाते
ये मच्छर भगाने की क्रीम है सब मुझे बताते ,

मुझे लगता इसकी खुशबू तो इतनी अच्छी है
फिर क्यों गुस्सा होते हैं सब जैसे ये मच्छी है ,

इसको लगाने से मैं कितनी गोरी हो जाती हूँ
किसी को फिर मैं नही सांवरी नज़र आती हूँ ,

काश आज की तरह फेयर एण्ड लवली होती
चेहरे पर लगाते ही मैं तो पूरी गोरी हो जाती ,

ना सब डाँटते ना मुझपे अपना ज्ञान बघारते
सबके सामने मेरी गोरी चमड़ी को सराहते ,

अच्छा हुआ बचपन में सबको ये कमी लगी
इसको दूर करने में मुझे अपनी प्रतिभा दिखी ,

बड़ी हुई तो रंग की बजाय हुनर से निखर गई
अपनी कामयाबी से मैं अंदर तक संवर गई ,

अंतर कल और आज से ये तो व्यक्त हो गया
जो मुद्दा इतना विशाल था आज ध्वस्त हो गया ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 10/01/2020 )

Language: Hindi
289 Views
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