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19 Jul 2021 · 1 min read

अंकुश

भावों का अंकुश लगा
दिल तुम्हारा बाँध लेता
दुर्गम राहों पर चल कर
कटघरे में कैसे रखता

बाँध कर पिजड़े रखा
पर स्वच्छन्द सा घूमता
जैसे केसरी हो उन्मुक्त
निर्जन से मन वन का

कितने साँचों में ढाला
अनुकूल न बन पाया
तपाया है संलाकों सा
कुंदन सा न बन पाया

मार चौगे और छक्के
रन बनाता रहा है ऐसे
जैसे देह मेरी बन गई
क्रिकेट पिच सी कोई

Language: Hindi
78 Likes · 333 Views
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