
Jul 5, 2016 · गज़ल/गीतिका
ग़ज़ल (वक़्त की रफ़्तार)
ग़ज़ल (वक़्त की रफ़्तार)
वक़्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा है नहीं
कल तलक था जो सुहाना कल वही विकराल हो
इस तरह से आज पग में फूल से कांटे चुभे हैं
चाँदनी से खौफ लगता ज्यों कालिमा का जाल हो
ये किसी की बदनसीबी गर नहीं तो और क्या है
याद आने पर किसी का हाल जब बदहाल हो
जो पास रहकर दूर हैं और दूर रहकर पास हैं
करते गुजारिश हैं खुदा से, मौत अब तत्काल हो
चंद लम्हों की धरोहर आज अपने पास है बस
ब्यर्थ से लगते मदन अब मास हो या साल हो
ग़ज़ल (वक़्त की रफ़्तार)
मदन मोहन सक्सेना

मदन मोहन सक्सेना पिता का नाम: श्री अम्बिका प्रसाद सक्सेना संपादन :1. भारतीय सांस्कृतिक समाज...

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