
Apr 13, 2020 · कविता
ख़फ़ा
हर मोड़ पे कोई न कोई हम से ख़फ़ा है
ऐसा लगता है
सभी वफ़ा के पुतले में हमीं इक बेवफ़ा हैं
अब किस से और क्यूं हम राजदारी करें
ये कौन सी ऐसी बात जो मेरे साथ पहली दफा है
लरजते होठों की हंसी ने डुबोया है मुजको
देखा न किसी ने कि आंखें दर्द की सफ़हा हैं
अब आईए हमसे आप भी हाथ तो मिलाइए
जिंदगी वैसे ही हर मोड़ पे पहले से खफा है
~ सिद्धार्थ

मुझे लिखना और पढ़ना बेहद पसंद है ; तो क्यूँ न कुछ अलग किया जाय......

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