Aug 24, 2019 · कविता
सौंदर्य वर्णन
अप्रतिम श्रृंगार
निश्छल प्रेम समाहित जिसमें, हृदय पुष्प कमल सा।
किससे समता करूँ जगत में, उपमेय नहीं तुमसा।
सृष्टि की पावन कृति हो तुम सुंदर चन्द्र लजाया।
भावों को धर सङ्ग सङ्ग में तेरा अङ्ग सजाया।
घन सी श्याम कांतिमय अञ्जन शोभित चञ्चल नयना।
मृदुल सुहावन शोणित वर्णित अधर भरे रसना।
भावित वासित केश घटा घन छाए जैसे अँगना।
रूप नवल अतुलित मनमोहक विकल भए भंवरा।।
सुंदर ग्रीव मोहनी वेणी कञ्चन पर ज्यूँ व्याल का पहरा।
सोम भरा हो कलश यथा मद यौवन का ठहरा।
तरंगिणी की मुक्त तरंगों सी सदा प्रवाहित रहना।
व्याकुल विह्वल पथी प्राप्त कर पाए कहीं झरना।
वर्षा ऋतु को नहीं तड़पता व्याकुल प्रेमी चकवा
विकल हृदय हो शान्त, पड़े जब स्वाति की जलधारा।।

प्रबन्धक: शाश्वत एकेडमी, सूची, रायबरेली। अध्यक्ष: शाश्वत अनुराग ट्रस्ट। अन्य व्यावसायिक उपक्रम: शाश्वत एंटरप्राइजेज, लखनऊ।

You may also like: