May 25, 2016 · कविता
सोच
गहराईयां कितनी समय की
गर्भ में पर कुछ नहीं
एक हलचल थी कहीं पर
आज पर वो भी नहीं
मैं कहां हूं खोज कैसी
और नज़र में भी नहीं
कट गई हूं वक्त से भी
याद में भी अब नहीं
ढूंढती क्या फिर रहीं हूं
कुछ है जो मिला नहीं
हूं किसी की इक दुआ
या बद्दुआओं में कहीं –??

House wife, M. A , B. Ed., Fond of Reading & Writing

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