
Mar 25, 2017 · कविता
!! सत्संग !!
आज न जाने कितने होते
सत्संग, हमारे आस पास
और दुनिया भी आती आपार
पर क्या सच्चा है ये संसार
सुनते तो हैं खूब मन से
पर विचारते नहीं मन से
घर पर आकर फिर करते
मनमानी और विचरते तन में
कहते सुना होगा फिर वो ही
चुगली , निंदा, अपमान
करते नहीं थकते वो कभी भी
अपने मुख से अपना बखान
घर में नहीं रखते शांति अपने
वहां करते सेवा जाकर अपार
गर यह भावना पैदा हो घर में
तो सदा उनका सुखी रहे घरद्वार
सत्संग सुनने का फायदा है तब
जब उसका असर रहे हर घर
मानुष के जन्म में आये हो
सोच समझ के सत्य का संग
अजीत कुमार तलवार
मेरठ

शिक्षा : एम्.ए (राजनीति शास्त्र), दवा कंपनी में एकाउंट्स मेनेजर, पूर्वज : अमृतसर से है,...

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