
Jul 8, 2016 · कविता
वृद्धाश्रम
बूढ़ी आँखों से
बरसता है दर्द हर क्षण
रात के सन्नाटे मेः
जगमगाती स्मृतियों के बीच
बिखर बिखर जाता है मन
गीला तकिया टीस उठता है बार बार
मन में रह रह कर उफनती है
किलकारियों की नदी
मासूम शरारतों और तुतलाती बोली से
गूंज उठती है अकेली कोठरी
बिखरा मन कुछ और टूट जाता है
पूरी पूरी रात
झुर्रियों भरे चेहरे पर
आड़ी तिरछी रेखायें बनाते आंसू
तलाशते रहते हैं अपना अर्थ
बेहद उदास हो उठती है
वृद्धाश्रम के किनारे बहती नदी ।

एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग। कहानी कविता व समीक्षा की 14पुस्तकें प्रकाशित।200से अधिक पत्र पत्रिकाओं में...

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