
Aug 9, 2016 · मुक्तक
विमौहा छंद
छंद- विमोहा
मापनी- 212 212 (गालगा गालगा)
आप जो मिल गये
फूल हैं खिल गये
मन सुवासित हुआ
दीप से जल गये
*धर्मेन्द्र अरोड़ा*

*काव्य-माँ शारदेय का वरदान * Awards: विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित

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