
Jun 9, 2016 · मुक्तक
राहें माँ देख रही होगी
चाहत में थोड़े पैसे की गाँव मैं छोड़ आया हूँ
मिट्टी की सौंधी खुशबू से बंधने तोड़ आया हूँ
राहें माँ देख रही होगी छाँव में बैठ पीपल के
न हिना हाथों से उतरी है वो प्रिया छोड़ आया हूँ
– ‘अश्क़’


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