मैं नदी हूं
मैं नदी हूं
प्रेम हो या घृणा
तिनका हो या कंकड़
फुल हो या राख
सब को समेट लूंगी खुद में
तुम्हें भी बहा ले जाऊंगी
दूर तक कि मिल सको
अपने प्रारब्ध से…
~ सिद्धार्थ
नदी को सुख दुख का कहां पता होता है
हर हाल में बहना ही तो उसे बदा होता है
~ सिद्धार्थ

Mugdha shiddharth
Bhilai
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मुझे लिखना और पढ़ना बेहद पसंद है ; तो क्यूँ न कुछ अलग किया जाय......

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