
Feb 23, 2021 · कविता
*मैं तुझे फिर मिलूंगी*
पता नहीं कब कैसे कहाँ मिलूंगी !
मगर मैं तुझे कहीं तो फिर मिलूंगी !!
बारिश की पहली बूँद में मिलूंगी !
या हवा के शीतल झोंके में मिलूंगी !!
पता नहीं कब कैसे कहाँ मिलूंगी !
मग़र मैं तुझे कहीं तो फिर मिलूंगी !!
चाँद की पिघलती चांदनी में मिलूंगी !
या अंधेरों में छुपे अहसास में मिलूंगी !!
पता नहीं कब कैसे कहाँ मिलूंगी !
मग़र मैं तुझे कहीं तो फिर मिलूंगी !!
धड़कते दिल की धड़कन में मिलूंगी !
या महकती तुम्हारी खुशबु में मिलूंगी !!
पता नहीं कब कैसे कहाँ मिलूंगी !
मग़र मैं तुझे कहीं तो फिर मिलूंगी !!
हो सके तो तलाश लेना ख़ुद में !
मैं वहीं कहीं तुझे ग़ुम मिलूंगी !!
पता नहीं कब कैसे कहाँ मिलूंगी !
मगर मैं तुझे कहीं तो फिर मिलूंगी !!
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*Writer* & *Wellness Coach* ---------------------------------------------------- मकसद है मेरा कुछ कर गुजर जाना । मंजिल मिलेगी...

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