Apr 7, 2021 · कविता
मैं अख़बार नहीं पढ़ता हूँ
मैं अख़बार नहीं पढ़ता हूँ
इसलिए नहीं कि मुझे पढ़ना नहीं आता
मगर इसलिए कि ताज़ा ख़बरों के नाम पर
मैं बासी चीज़े नहीं पढ़ता हूँ
मैं अख़बार नहीं पढ़ता हूँ
क्योंकि सुबह सुबह लहू से भीगे हुए काग़ज़ों को
अपने हाथों से छूना और ज़ुबाँ से लगाना
मुझे अच्छा नहीं लगता
मैं अख़बार नहीं पढ़ता हूँ
क्योंकि झूठी खबरें मुझे पसंद नहीं
क्योंकि मज़हबी दंगे पढ़ने का भी शौक़ नहीं
और न ही कारोबारियों के लुभावने इस्तिहार
झूठ को सुबह की चाय के साथ नहीं पीता हूँ
मैं अख़बार नहीं पढ़ता हूँ
जॉनी अहमद ‘क़ैस’
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When it becomes difficult to express the emotions I write them out. I am a...

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