मे मजबूर किसान हूँ
खेती करता बोझा ढ़ोता,
मे मजबूर किसान हूँ
लजारी मे जीने बाला,
मे मजदूर किसान हूँ
अन्न उगाकर देने वाला,
मे ही इक इंसान हूँ
भारत माँकी आन हूँ यारो
भारत माँ की शान हूँ
घर घर मे सबके चेहरे पर
देता मे मुस्कान हूँ
खुशी खुशी से अन्न उगाता
मे सोने की खान हूँ
नेता अफसर के जुल्मो को
सहने वाला किसान हूँ
मंहगाई से लड़ करके भी
करता मे अभिमान हूँ
मत मारो मुझको तुम यारो
मे ही सबकी जान हूँ
इक किरण वनके आगन मे
करता मे उन्वान हूँ
कृष्णा करता यारो मेरे
मे मजबूर किसान हूँ
लाचारी मे जीने वाला
मे मजदूर किसान हूँ

कृष्णकांत गुर्जर
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संप्रति - शिक्षक संचालक -G.v.n.school dungriya लेखन विधा- लेख, मुक्तक, कविता,ग़ज़ल,दोहे, लोकगीत भाषा शैली -...

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