
Nov 30, 2018 · कविता
मेरी माँ
तुम्हारे सान्निध्य को तरसती ,बिलखती,
तुम्हारी ममता की छाँव में,
प्रेम से सिंचित पुष्प सी मैं,
आज अपनी क्यारियों में उलझी सी–
पर जानती हूँ…….
तुम हो तो मैं हूँ
तुमसे ही अस्तित्व है मेरा।।
गहन अंधियारी रात में,
तिमिर के संत्रास से व्यथित…..
दूर से टिमटिमाते तारे की रोशनी सी —
संबल देती मेरी माँ ।।
मुश्किलों के चक्रव्यूह में,
संसार के कुचक्र से व्यथित….
मीठी लोरियों की स्वरलहरी सी —
शक्ति देती मेरी माँ ।।
मेरे कण-कण में समाई ,
मेरे हर कर्म में परिलक्षित सी ,
थपकियों और हिदायतों के पुलिंदों के साथ…
हर कदम प्रज्ज्वलित करती मेरी माँ ।।
तिन्नी श्रीवास्तव,
बैंगलोर ।
This is a competition entry: "माँ" - काव्य प्रतियोगिता
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कविता और कहानियाँ लिखती हूँ। लेखन मेरे लिए अपने मनोभावों को व्यक्त करने का साधन...

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