
Jun 24, 2016 · मुक्तक
मेघा
नदियाँ सूखती जाती, नाले, तालाब सब सूखे
हैं इमारतें ढेरों, पेड़ ज्यों कंकाल हों रूखे
निर्झर बन बरसो रे मेघा झनाझन झनाझन घन
धरा धान्य से हो परिपूरित प्राणी रहें न भूखे।

poet and story writer

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