Mar 2, 2021 · गज़ल/गीतिका
मुस्कुराने के लिए
मुस्कुराने के लिए
रूठना भी है जरूरी, मान जाने के लिये।
कुछ बहाना ढूंढ लीजे मुस्कुराने के लिए ।
जिन्दगी की जंग में उलझे हुए हैं इस कदर।
वक्त ही मिलता नहीं, हँसनै हँसाने के लिये।
काम ऐसा कर चलें जो नाम सदियों तक रहे।
अन्यथा जीते सभी हैं सिर्फ खाने के लिये।
ग़मज़दा कोई नहीं है, मौत पर भी आजकल।
लोग जुड़ते हैं फक़त चेहरा दिखाने के लिये।
कृष्ण ये धरना यहाँ पर अनवरत चलता रहे।
माल मिलता है यहाँ भरपूर खाने के लिये।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।
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सहजयोग, प्रचार, स्वांतःसुखाय लेखक, कवि एवं विश्लेषक.

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