मुक्तक
मुक्तक
जूझके हालात से कर हादसों का सामना।
वज्र सा पाषाण बन कर बादलों का सामना।
बुझदिलों की जीत होती है नहीं संसार में-
तू बढ़ाले हर कदम कर फ़ासलों का सामना।
डाॅ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
तड़प रहे मतवाले क्यों तुम, कुदरत का है सार यही।
जन्म-मृत्यु होना निश्चित है, जीवन का आधार यही।
सुख-दुख ,धूप छाँव का नाता, फूल- शूल ज्यों साथ रहें-
यश-वैभव मृृगतृष्णा जैसा, सुंदर सा संसार यही।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
चला जाऊँ अगर तन्हा नहीं कोई गिला होगा।
तुम्हारे रूँठ जाने का नहीं फिर सिलसिला होगा।
हज़ारों महफ़िलें होंगी मगर मुझसा नहीं होगा-
वफ़ा चाहूँ अगर तुमसे कहो क्या फ़ैसला होगा।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
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