मुक्तक(अमाबस की अंधेरी में ज्यों चाँद निकल आया है )
तुम्हारा साथ ही मुझको करता मजबूर जीने को
तुम्हारे बिन अधूरे हम बिबश हैं जहर पीने को
तुम्हारा साथ पाकर के दिल ने ये ही पाया है
अमाबस की अंधेरी में ज्यों चाँद निकल आया है
मुक्तक(अमाबस की अंधेरी में ज्यों चाँद निकल आया है )
मदन मोहन सक्सेना

मदन मोहन सक्सेना
Shahjahanpur ( U.P)
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