
Nov 22, 2018 · कविता
माँ
“माँ”
“”””
यह जीवन
उसका दिया आशीष
कैसे करूँ परिभाषित
उस माँ को
जिसकी ममता तले
मैं बड़ा हुआ हूँ…!
मेरी हर साँसे
उसके कर्जदार
हरपल उपहार
जिसके रहमोकरम
मैं गढ़ा हुआ हूँ…..!
माँ ही सृष्टि
माँ ही वृष्टि
कैसे करूं
रहमों का बखान
जिसके सह में
चंद सोपान
मैं चढ़ा हुआ हूँ…..!
सह के हर सितम
सह के हर गम
दिया मुस्कान
उसकी तारीफों के लिए
स्तब्ध सा
मैं खड़ा हुआ हूँ…..!
कमलेश यादव
कुम्हारी,बरमकेला
छत्तीसगढ़
This is a competition entry: "माँ" - काव्य प्रतियोगिता
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