Nov 15, 2018 · कविता
माँ
नौ मास नन्हा भ्रूण गर्भ में धारण करती
अपने हाड़ माँस व रक्त कणों से पोषित करती
अपने हृदय से उसके हृदय को स्पंदित करती
मातृत्व के सुखद अहसास से पुलकित हो उठती
असहय प्रसव पीड़ा को जब सहती
नन्ही जान को तब जीवनदान माँ देती
माँ का दूध अमृत सम कहलाता
आँचल में उसके पूरा जहाँ समाता
ममता की मूर्त वह दयानिधान कहलाती
वह करुणावतार से अन्नपूर्णा बन जाती
कष्टों को ख़ुद मूक रहकर बस सहती जाती
निज संतान के जीवन को सदा सुखद बनाती
अक्षर ज्ञान कराकर पहली गुरु माँ बन जाती
सदाचार संस्कारों का सदा हमें पाठ पढ़ाती
माँ की गरिमा मुझको तो अवर्णनीय लगती
शब्दों की बंदगी भी धूमिल -सी जँचती
माँ का नाम सबसे सुंदर अभिराम
माँ के चरणों में पूजित चारों धाम
जन्मदात्री पालनकर्त्री का सदा मानो उपकार
उस जननी माँ का वंदन करो बारंबार। ।
स्वरचित
संतोष कुमारी
नई दिल्ली
This is a competition entry: "माँ" - काव्य प्रतियोगिता
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