
Nov 3, 2018 · कविता
माँ
देखा नहीं स्वर्ग का सुख है
ईश्वर की सत्ता है कैसी।
पर देखी हमने निज आँखों
माँ है केवल माँ के जैसी।।
माँ होती है ठण्ड धूप की
ज्येष्ठ मास की रात चाँदनी।
मलयानिल की स्वस्थ कामना
वत्सलता की नित्य नदी-सी।।
माँ धरती सम क्षमा धारती
और वृक्ष की शीतल छाया।
माँ की ममता पाने खातिर
ईश्वर भी भू-तल पर आया।।
माँ प्रसन्न हो तभी ईश भी
हमको राह दिखाता है।
और नहीं तो जीवन भर वह
इधर -उधर भटकाता है।।
मंदिर की देवी से अच्छी
निज जननी को पाता हूँ।
इसीलिए उसकी सेवा का
अवसर नहीं गंवाता हूँ।।
मोती प्रसाद साहू
अल्मोड़ा
This is a competition entry: "माँ" - काव्य प्रतियोगिता
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जन्म 1963(वाराणसी) Books: पहचान क्या है( कविता संग्रह) 2013


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