Nov 29, 2018 · कविता
माँ तो बस माँ होती है
माँ का आँचल जैसे ममता की छत
माँ के पांवों में तो होती जन्नत
डाँट में उसकी हमारी ही भलाई
और छिपी रहती बेपनाह मुहब्बत
माँ से ही लगता है घर भी घर
आंखों में उसके है प्यार का सागर
चुभने न देती काँटा भी पाँव में
महफूज़ रहते हैं उसकी छाँव में
चाहे दूर रहो माँ से कितना
दूर नही रहती कभी उसकी दुआ
दौलत वो अपने प्यार की लुटाती है
पर अपने लिए कुछ भी न चाहती है
क्यों ढूंढते हो भगवान मंदिरों में
कर लो अरदास माँ के चरणों मे
बड़ी कोमल निश्छल सरल होती है माँ
खुशियों को जीवन मे बोती है माँ
बच्चे हँसते हैं तो वो हँसती है
दुख देख ज़रा उनका रो पड़ती है
माँ तो बस माँ होती है।
डॉ0 पंकज दर्पण अग्रवाल
मुरादाबाद
This is a competition entry: "माँ" - काव्य प्रतियोगिता
Voting for this competition is over.
Votes received: 40
9 Likes · 21 Comments · 177 Views

PankajDarpan
1 Post · 177 View
मैं बेसिक रूप से स्टेज आर्टिस्ट और डायरेक्टर हूँ। रामलीला में विशेषज्ञता रखता हूँ। इसके...

You may also like: