
Nov 4, 2018 · कविता
माँ तू है दुःख कबहूँ न होई
माँ जैसा न और है कोई,
माँ तू है दुःख कबहूँ न होई,
सूरज भी पश्चिम चल जाए,
चन्दा भी तो शीश झुकाए,
तारे भूमि पर आ टिमटिमाएँ,
सम्भव यह कर पाए जोई,
ऊहे त हमार माई होई,
माँ जैसा न और है कोई।
तुम दूर न हो सकती माँ,
जगत जन्मा जब तुम जन्मी माँ,
इसकी न तुम उसकी माँ,
माँ हो तुम सबकी माँ,
माँ पर न है नाम लिखा,
माँ पर अनमोल रतन बिका,
यमराज भी आगे तेरे झुका,
तुझ जैसा न और है कोई,
माँ तू है दुःख कबहूँ न होई।।
©® संदर्भ मिश्र पुत्र श्री नरेंद्र मिश्र,
ग्राम दफ्फलपुर,
पोस्ट व थाना रोहनियाँ,
जनपद वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत-221108
This is a competition entry: "माँ" - काव्य प्रतियोगिता
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जय हिंद जय मेधा जय मेधावी भारत


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