
Nov 29, 2018 · कविता
माँ का स्वरूप...
नफ़रतों की दुनियां में,इक माँ ही अपनी होती है,
हँसती है हमारे लिए,हमारे लिए ही यह रोती है।
सुकून से हम रहें, सुख चैन अपना वो खोती है,
दुःख में भी,चेहरे पर शिकन इसके नहीं होती है।
धन दौलत की चाहत, इसको कभी नहीं होती है,
बच्चों की बस इक मुस्कान पर,ये कुर्बान होती है।
गर मुश्किल में हों,बच्चे कभी परदेस में इसके,
तो दुआओं के रूप में पास उनके यह होती है।
देखा नहीं ईश्वर को,सूरत कैसी उसकी होती है?
धरती पर ईश्वर के रूप में,माँ ही शायद होती है।
कमलेश आहूजा’कमल’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
This is a competition entry: "माँ" - काव्य प्रतियोगिता
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