
Jan 11, 2017 · गज़ल/गीतिका
माँ अब बंदिश हट जाने दो
माँ अब बंदिश हट जाने दो
बेटी को जग में आने दो
गर्भ मे माँ क्युं मार रही हो
मुझको दुनिया में आने दो
गुलशन में गुल की माफ़िक़ माँ
मुझको भी अब खिल जाने दो
फूलों की पंखुरियों जैसे
पंख चमन में फैलाने दो
अविरल जल की बीच धार में
मुझे नाव सा बह जाने दो
आज परिंदों जैसा नभ में
मुझको भी अब मंडराने दो
खूब समुन्दर मे तैरुंगी
जलपरियो सा बन जाने दो
पंछी बनकर खुले गगन मे
मंजिल मुझको अब पाने दो |
तितली बनकर मुझको भी तुम
फूलों का रस पी जाने दो|
ख़्वाहिश को बल दे दो मेरी
अब मुझको भी इठलाने दो
धरती से अब उठ कर ए माँ
परचम नभ में लहराने दो
बेटी हुँ मैं चिडिया जैसी
पर मेरे मत कट जाने दो
कँवल गुजारिश करती है माँ !
मुझको भी अब जी जाने दो
This is a competition entry: "बेटियाँ" - काव्य प्रतियोगिता
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जन्मस्थान - सिक्किम फिलहाल - सिलीगुड़ी ( पश्चिम बंगाल ) दैनिक पत्रिका, और सांझा काव्य...


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