
Jul 22, 2016 · कविता
मन उड़ने का है
आज हवा में बिना पंख के मन उड़ने का है
बीते कल से आज पुन:, मन जुड़ने का है
बीता कल, कल कल कलरव सा
आज ह्रदय में गूंजे
रुके हुए जल में से बाहर
मन करता है कूंदे
बंधन छोड़ मुक्त ह्रदय फिर चल पड़ने का है|
आज हवा में बिना पंख के, मन उड़ने का है|
लगभग आधी हुई उम्र पर
फिर से मुरली आये
विस्मृत स्वर रचना सरगम बन
ओंठों पर मुस्काये
स्मृतियों की ओर पुन: अब, मन जुड़ने का है
आज हवा में बिना पंख के, मन उड़ने का है
संकल्पों का पुन: उभारना
कुछ करता लगता है
भ्रमित हुआ मन, सही मार्ग पर
चलता सा लगता है
जागे मन से आज ह्रदय फिर, कुछ गढ़ने का है
आज हवा में बिना पंख के, मन उड़ने का है
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मूलतः ग्वालियर का होने के कारण सम्पूर्ण शिक्षा वहीँ हुई| लेखापरीक्षा अधिकारी के पद से...

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