
Aug 16, 2016 · कविता
भ्रमर
हाय कैसे भ्रमर चूसता है।
रस भला पुष्प भी देखता है।
खोलकर सोचता दल सभी है।
क्या मुझे कुछ मिलेगा कभी है।
जागता है अरे मैं सुमन हूँ।
चाहता जग भलाई अमन हूँ।
काम आकृष्ट करना रहा है।
बैर तुझ से मधुप कब रहा है।
धर्म से भेद करता नही हूँ।
मानता जातियों को नही हूँ।
खून मानव नसों में वही है।
फूल की दृष्टि सबसे सही है।
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नीरज पुरोहित रूद्रप्रयाग(उत्तराखण्ड)


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