बेवफ़ा है ज़िन्दगी और मौत पर इल्ज़ाम है
बेवफ़ा है ज़िन्दगी और मौत पर इल्ज़ाम है
मौत तो इस ज़िन्दगी का आखिरी आराम है
लोग जाने क्यों भटकते हैं खुदा की ख़ोज में
खोजिये ग़र माँ के क़दमों के तले हर धाम है
लीजिए पढ़ चाहे गीता बाइबल या फिर क़ुरान
सबमें केवल इक मुहब्बत का लिखा पैगाम है
मंज़िलों का रास्ता मालूम है सबको मगर
डर गया जो मुश्किलों से शख़्स वो नाकाम है
हुक्मरानों के लिये सारी मलाई इक तरफ़
लुट रहा सदियों से केवल आदमी जो आम है
सच से नाता तोड़कर जाते मुसाफ़िर याद रख
झूठ की परवाज़ अच्छी पर बुरा अंजाम है
देख पाता ही नहीं अपनी गलतियाँ आदमी
और सच दिखलाने वाला आइना बदनाम है
हर तरफ़ बदकारियाँ दुश्वारियां इतनी हुई
आदमीयत की हरिक कोशिश हुई नाकाम है
मर चुका ईमान, कठपुतली बने दौलत के सब
दौरे-हाज़िर में हरिक इंसान का इक दाम है
माही
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Mahesh Kumar Kuldeep "Mahi"
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प्रकाशन साहित्यिक गतिविधियाँ एवं सम्मान – अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं में आपकी गज़ल, कवितायें आदि का प्रकाशन...

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