
बेटी हूँ मैं...
लाख जंजीरें हो बंधी हुई
कितनी ही बेड़ियों में जकड़ी हुई
ख़ुशी से सब सहती हूँ मैं
किसी से कुछ न कहती हूँ मैं
सदा ख़्याल है मुझे
आख़िर एक बेटी हूँ मैं…।
हर तूफान को झेलती हूँ
पिता तुम्हारे अरमान से खेलती हूँ
तुम मेरी राहें फूलों से सजा देते
तुम मेरे सपनों का चाँद ला देते
तुम्हारी विवशताएं जानती हूँ
तुम्हारी खातिर बोझ नहीं हूँ मैं….।
जब-जब लगे अँधियारा,कदम सम्भाल के
चलती हूँ,
तुम्हारे आशीर्वादों की चादर तान के
चलती हूँ,
जमाने की बुरी नजरें ताकती है हर और,
भद्दी गालियां रोकती है मुझे,
तुम्हारी इज्जत के लिए खामोश रहती हूँ मैं ,
आखिर एक बेटी हूँ मैं…।
This is a competition entry: "बेटियाँ" - काव्य प्रतियोगिता
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मोनिका भाम्भू कलाना
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कभी फुरसत मिले तो पढ़ लेना मुझे, भारी अन्तर्विरोधों के साथ दृढ़ मानसिकता की पहचान...

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