
Jan 21, 2017 · कविता
बेटियाँ
आज मेरा आंगन महका हैं,
आज मेरा आंगन चहका हैं,
खिली हैं आज कली मेरे आंगन में,
सूरज सी आभा लिये,
लिये चाँद सी सौम्यता,
आकाश सा विस्तार लिये,
झरने सा ठहराव लिये,
लिये कलरव चिड़ियो सा,
धरती सा भार लिये,
फूलो सी कोमलता लिये,
पेड़ो की मखमली छांव लिये|
खिली कली आज मेरे आंगन में,
होने से जिसके रंग भरे त्यौहार हैं,
होने से जिसके खील, बताशे, पकवान हैं,
होने से जिसके मेहंदी, टिकिया, कंगन हैं
होते जिसके माथे सहलाते हाथ हैं,
होते जिसके रिश्ते-नाते साथ हैं|
महकाती हैं आज आंगन किसी और का,
बन बहू, पत्नी के रिश्तो में ढालकर|
अंजू निगम
This is a competition entry: "बेटियाँ" - काव्य प्रतियोगिता
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